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ई-टेंडर का विरोध कर के फंसे सरपंच - ग्रामीणों का समर्थन नहीं मिलने पर फिर बदली रणनीति, बढ़ी परेशानी

 
ई-टेंडर का विरोध कर के फंसे सरपंच - ग्रामीणों का समर्थन नहीं मिलने पर फिर बदली रणनीति, बढ़ी परेशानी

पंचायती राज संस्थाओं में ई टेंडरिंग का विरोध करके सरपंच अब बुरी तरह से फंस गए हैं। एक तो सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है, दूसरा सरपंचों का आंदोलन भी सरकार कोई खास दबाव नहीं बना पाया है। क्योंकि अभी तक सरपंचों के आंदोलन को आम ग्रामीणों का समर्थन नहीं मिल पाया है। मझधार में फंसे सरपंचों ने अब अपने आंदोलन के लिए रणनीति बदल ली है। सरपंच अब खुलकर कहने लगे हैं कि वह ई टेंडरिंग के विरोध में नहीं बल्कि लिमिट बढ़ाने की मांग कर रहे हैं

गांवों में जाकर कह रहे, ई टेंडरिंग के खिलाफ नहीं, लिमिट बढ़ाने की मांग कर रहे

इसी रणनीति के तहत अब सरपंच गांव-गांव जाकर आम जनता को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह ई टेंडरिंग के खिलाफ नहीं है, बल्कि आनन-फानन में कराए जाने वाले कामों के लिए 2 लाख रुपये की राशि कम है। इस राशि को बढ़वाने की मांग की जा रही है, ताकि गांवों के लोगों के कामों को जल्दी कराया जा सके

17 मार्च को विधानसभा घेराव का एलान कर चुके सरपंच, तैयारियों में जुटे

सरपंच अब जनता के बीच जाकर तर्क दे रहे हैं कि ई टेंडरिंग में समय अधिक लगता है, इसलिए बिना ई टेंडरिंग की राशि बढ़ाने की मांग ग्रामीणों के लिए कर रहे हैं। 10 मार्च को चंडीगढ़ में हुई सरपंच एसोसिएशन की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में ई टेंडरिंग के मुद्दे पर मंथन किया गया। इसी में फैसला लिया था कि 17 मार्च को विधानसभा का घेराव किया जाएगा। हालांकि, देखना होगा कि ग्रामीण सरपंचों के समर्थन में आते हैं या नहीं और घेराव कर पाते हैं या नहीं

प्रतिक्रिया

हम ई टेंडरिंग का विरोध नहीं कर रहे, केवल लिमिट बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। एसोसिएशन की मांग 73वें संशोधन की 12वीं सूची के 29 अधिकारों को देने की है। सरपंचों के बारे में गलत प्रचार किया गया कि वह ई टेंडरिंग का विरोध कर रहे हैं, हम केवल लिमिट बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, वो भी गांवों के लोगों के कामों को जल्दी कराने के लिए। हम गांव गांव जाकर जनता को जागरूक कर रहे हैं कि सरपंच अपनी नहीं, जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं। -रणबीर सिंह समैण, प्रदेशाध्यक्ष, सरपंच एसोसिएशन